शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

चुपचाप बारिश

*


शहर में चुपचाप बारिश
काँच पर
रह-रह बरसती है
कि जैसे
दर्द पीकर
ज़िंदगी
सपने निरखती है।

बाढ़


राम जी,
बाढ़ ने इस तरह घेरा
घर गया, अपने गए,
सपने गए
हर तरफ़ से दर्द बरसा
गया डेरा

घटा

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घटा, तो फिर घटा थी
दूब चुनरी, झाँझ बिजली
फूल-सी मुस्कान
और
आशीष रिमझिम

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

बादल

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बस वही बकवास,
गुस्सा
और बरसना
सुबह से इन बादलों ने
घर नहीं छोड़ा

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

वह हवा

*

कुछ तो था उस हवा में जो
झूम कर
उठकर चली थी
इस शहर भर घाम में
वह एक
मिश्री की डली थी

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

नीलाभ नभ गहरा गया

*
किस अगन से था बुझा वह तीर
जो आकाश से गुज़रा
हवा से जूझ कर बिखरा
लड़ा वह बिजलियों से
बादलों से वह भिड़ा
देखते ही देखते
नीलाभ नभ गहरा गया
लो - ग्रीष्म का पहरा गया

सोमवार, 30 नवंबर 2009

वैशाख के दरबार

*

ताड़ के डुलते चँवर
वैशाख के दरबार
सड़कें हो रही सूनी
कि जैसे
आ गया हो कोई तानाशाह

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

चिरैया

1
फुरफुराती
दूब पर चुगती चिरैया
चहचहाती झुंड में
लुकती प्रगटती
छोड़ती जाती
सरस आह्लाद के पदचिह्न

झरती धूप

1

खिलखिलाते लुढ़कते दिन
बाड़ से- आँगन तलक
हँसकर लपकते रूप
झरती धूप

आकाशगंगा



हरहराकर
गिर रही आकाश गंगा
औ' प्रलय में घुल रहे अवसाद
नए मंदिर
ले रहे आकार
रचने को नया संसार

मरकत सा शहर

*

कोई
मरकत सा शहर
सुनसान है अब
चिमनियों में आग-
ना किलकारियाँ बारामदों में
ताल खाली
आसमां चुपचाप है अब

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

रस्ता

1

कहीं तो
जाता होगा रस्ता
फूलों वाली छाँव से होकर
हर जंगल
वनवास नहीं होता होगा

आँधी

1

रेत की आँधी
समंदर का किनारा
तप रहा सूरज
औ'
नन्हा फूल
कुम्हलाता बेचारा

सन्नाटा

1

रात का खामोश कोना
द्रुम लताओं का घनापन
और सन्नाटा
गली में
कौन आता?
कौन आता?

मुँडेर पर गुलमोहर

1

--फिर मुँडेरों पर झुकी
--गुलमोहर की बाँह
--फिर हँसी है छाँह
--फिर हुई गुस्सा सभी पर धूप
--क्या परवाह

एक आँगन धूप

1
--एक आँगन धूप का
--एक तितली रंग
--एक भँवरा गूँजता दिनभर
--एक खिड़की-
--दूर जाती सी सड़क के साथ
--जैसे गुनगुनाती आस