शुक्रवार, 27 मई 2011

बुदापैश्त - ४


शाम रौशन
काम से छुट्टी
भीड़ गहमह
छतरियों के झुंड
अपनापन स्वजन का
तश्तरी में स्वाद मन का


प्रवासी



उड़ रहे
पंछी प्रवासी
सूर्य की किरणें उदासी
आसमानों में
घटा सी

बुधवार, 18 मई 2011

शुक्रवार, 13 मई 2011

अम्मा पढ़ती है


काम काज में बचपन बीता
काम काज में गई जवानी
उम्र गए पर
फुरसत पाकर
अब देखो अम्मा पढ़ती है

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

धूप-छाँह

तरुवरों से घिरा रस्ता
धूप थोड़ी छाँह थोड़ी
जिंदगी सा-
नजर तक
आता था सीधा
अंत पर दिखता नहीं था

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

०२. बुदापैश्त




झर रही है धूप झिलमिल
पत्तियों से
ढँक रहीं पूरा भवन
कोमल लताएँ
और
दीवारों की ईँटें बोलती है

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

गुरुवार, 31 मार्च 2011

मधुमास बस्ती



फिर कोई
मधुमास बस्ती
फिर कोई खामोश रस्ता
कुछ नहीं कहना है
लेकिन
बात हो जाती है फिर भी

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

चाँद और सन्नाटा


सन्नाटा सीने में
कोई चाँद उगाता है
आवाजों का
लौट के आना
होता नहीं कभी

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

तृप्ति

प्रकृति जागर,
भरी गागर
दूर तक फैला हुआ है
रेत सागर
ढूँढती है दृष्टि खाली
तृप्ति वो ही प्याऊ वाली