सोमवार, 30 नवंबर 2009

वैशाख के दरबार

*

ताड़ के डुलते चँवर
वैशाख के दरबार
सड़कें हो रही सूनी
कि जैसे
आ गया हो कोई तानाशाह

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

चिरैया

1
फुरफुराती
दूब पर चुगती चिरैया
चहचहाती झुंड में
लुकती प्रगटती
छोड़ती जाती
सरस आह्लाद के पदचिह्न

झरती धूप

1

खिलखिलाते लुढ़कते दिन
बाड़ से- आँगन तलक
हँसकर लपकते रूप
झरती धूप

आकाशगंगा



हरहराकर
गिर रही आकाश गंगा
औ' प्रलय में घुल रहे अवसाद
नए मंदिर
ले रहे आकार
रचने को नया संसार

मरकत सा शहर

*

कोई
मरकत सा शहर
सुनसान है अब
चिमनियों में आग-
ना किलकारियाँ बारामदों में
ताल खाली
आसमां चुपचाप है अब

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

रस्ता

1

कहीं तो
जाता होगा रस्ता
फूलों वाली छाँव से होकर
हर जंगल
वनवास नहीं होता होगा

आँधी

1

रेत की आँधी
समंदर का किनारा
तप रहा सूरज
औ'
नन्हा फूल
कुम्हलाता बेचारा

सन्नाटा

1

रात का खामोश कोना
द्रुम लताओं का घनापन
और सन्नाटा
गली में
कौन आता?
कौन आता?

मुँडेर पर गुलमोहर

1

--फिर मुँडेरों पर झुकी
--गुलमोहर की बाँह
--फिर हँसी है छाँह
--फिर हुई गुस्सा सभी पर धूप
--क्या परवाह

एक आँगन धूप

1
--एक आँगन धूप का
--एक तितली रंग
--एक भँवरा गूँजता दिनभर
--एक खिड़की-
--दूर जाती सी सड़क के साथ
--जैसे गुनगुनाती आस