एक आँगन धूप
कुछ ऐसी क्षणिकाएँ जो गीत तक नहीं पहुँचीं
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चोंच में आकाश
नवगीत की पाठशाला
शुक्रवार चौपाल
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
तृप्ति
प्रकृति जागर,
भरी गागर
दूर तक फैला हुआ है
रेत सागर
ढूँढती है दृष्टि खाली
तृप्ति वो ही प्याऊ वाली
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