एक आँगन धूप
कुछ ऐसी क्षणिकाएँ जो गीत तक नहीं पहुँचीं
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नवगीत की पाठशाला
शुक्रवार चौपाल
मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
चाँद और सन्नाटा
सन्नाटा सीने में
कोई चाँद उगाता है
आवाजों का
लौट के आना
होता नहीं कभी
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
तृप्ति
प्रकृति जागर,
भरी गागर
दूर तक फैला हुआ है
रेत सागर
ढूँढती है दृष्टि खाली
तृप्ति वो ही प्याऊ वाली
मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010
वसंत
*
मौसम की
देहरी से गुज़रता है वसंत
चुप !
हाथ में रोटी और चाय लिये
पेट की भूख न मन का उछाह
कुछ भी जलाता नहीं
गुरुवार, 14 जनवरी 2010
पुराने दिन
*
बुलबुले ही बुलबुले
बहते हुए
भरे पानी, मुदित चेहरे
नाव कागज़ की
पुराने दिन
चाय गुमटी
*
सड़क है, शोर भी है
और बारिश साथ चलती है
हवा है साँस में नम सी
खुली छतरी
हाथ की बंद मुट्ठी में
और लो !
आ गई गुमटी चाय की।
शुक्रवार, 8 जनवरी 2010
सर्द रात में
*
दूर तक
कोहरे जड़े थे पेड़, रस्ते
और हम तुम
झर रही थी ओस मद्धम
कुछ अलावों में
कहीं सुगबुग बची थी।
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