गुरुवार, 14 जनवरी 2010

पुराने दिन

*

बुलबुले ही बुलबुले
बहते हुए
भरे पानी, मुदित चेहरे
नाव कागज़ की
पुराने दिन

चाय गुमटी

*
सड़क है, शोर भी है
और बारिश साथ चलती है
हवा है साँस में नम सी
खुली छतरी
हाथ की बंद मुट्ठी में
और लो !
आ गई गुमटी चाय की।

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

सर्द रात में

*


दूर तक
कोहरे जड़े थे पेड़, रस्ते
और हम तुम
झर रही थी ओस मद्धम
कुछ अलावों में
कहीं सुगबुग बची थी।