सोमवार, 25 अप्रैल 2011

धूप-छाँह

तरुवरों से घिरा रस्ता
धूप थोड़ी छाँह थोड़ी
जिंदगी सा-
नजर तक
आता था सीधा
अंत पर दिखता नहीं था

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

०२. बुदापैश्त




झर रही है धूप झिलमिल
पत्तियों से
ढँक रहीं पूरा भवन
कोमल लताएँ
और
दीवारों की ईँटें बोलती है

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011