शाम रौशन
काम से छुट्टी
भीड़ गहमह
छतरियों के झुंड
अपनापन स्वजन का
तश्तरी में स्वाद मन का
उड़ रहे
पंछी प्रवासी
सूर्य की किरणें उदासी
आसमानों में
घटा सी
हलचलों में गुम गली है
रौशनी की खलबली है
शहर में शाम
उतरी है
काम काज में बचपन बीता
काम काज में गई जवानी
उम्र गए पर
फुरसत पाकर
अब देखो अम्मा पढ़ती है