शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

सर्द रात में

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दूर तक
कोहरे जड़े थे पेड़, रस्ते
और हम तुम
झर रही थी ओस मद्धम
कुछ अलावों में
कहीं सुगबुग बची थी।

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